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क़तार में खड़ी चीटियाँ / सीमा संगसार

हमारा देश
उछल रहा है
गिल्ली की तरह
पुलिस डंडा उठाये
घूम रही है!
लोग अब भी
नींद में नहीं है
जग उठे हैं
उन्हें सब कुछ दीखता है
शीशे में साफ़–साफ़
कतार में खड़ी
चीटियाँ भी
खतरनाक हो सकती है
यह तथ्य
हाथी ने
कभी पढ़ा था
किसी किताब में...

इन ख़बरों से बेखबर
सूंड़ उठाए घूम रहा है हाथी
की भीड़ भी
पारंगत होती है
हत्यायों में—


 {मनहूस वक़्त की एक मनहूस कविता}