भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क़िस्सा तो ज़ुल्फ़-ए-यार का तूल ओ तवील है / शेर मो. ख़ाँ ईमान

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:56, 10 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेर मो. ख़ाँ ईमान }} {{KKCatGhazal}} <poem> क़िस्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क़िस्सा तो ज़ुल्फ़-ए-यार का तूल ओ तवील है
क्यूँकर अदा हो उम्र का रिश्ता क़लील है

गुंजाइश दो शाह नहीं एक मुल्क में
वहदानियत के हक़ की यही बस दलील है

मशहद पे दिल के दीदा-ए-गिर्यां पुकार दे
प्यासा न जा ब-नाम-ए-शहीदाँ सबील है

नज़रें लड़ानें में वो तग़ाफ़ुल है ख़ुश-नुमा
जिस तरह से पतंगों के पंजों में ढील है

‘ईमान’ क्या बयान करूँ उस शहसवार का
हाज़िर जिलौ के बीच जहाँ जिब्रईल है