भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क़िस्सा मिरे जुनूँ का बहुत याद आएगा / शहरयार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=शहरयार | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह=मिलता रहूँगा ख़्वाब में / शहरयार | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatGhazal}} | ||
+ | <poem> | ||
क़िस्सा मिरे जुनूँ का बहुत याद आएगा | क़िस्सा मिरे जुनूँ का बहुत याद आएगा | ||
− | |||
जब-जब कोई चिराग हवा में जलाएगा | जब-जब कोई चिराग हवा में जलाएगा | ||
− | |||
रातों को जागते हैं,इसी वास्ते कि ख्वाब | रातों को जागते हैं,इसी वास्ते कि ख्वाब | ||
+ | देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा | ||
− | + | कब से बचा के रक्खी है इक बूँद ओस की | |
− | + | ||
− | + | ||
− | कब से बचा के रक्खी है इक बूँद ओस की | + | |
− | + | ||
किस रोज़ तू वफ़ा को मिरी आज़माएगा | किस रोज़ तू वफ़ा को मिरी आज़माएगा | ||
+ | कागज़ की कश्तियाँ भी बड़ी काम आएँगी | ||
+ | जिस दिन हमारे शहर में सैलाब आएगा | ||
− | + | दिल को यकीन है कि सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | दिल को यकीन है कि सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क | + | |
− | + | ||
कोई फ़सुर्दा दिल ये ग़ज़ल गुनगुनाएगा | कोई फ़सुर्दा दिल ये ग़ज़ल गुनगुनाएगा | ||
+ | </poem> |
22:35, 28 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
क़िस्सा मिरे जुनूँ का बहुत याद आएगा
जब-जब कोई चिराग हवा में जलाएगा
रातों को जागते हैं,इसी वास्ते कि ख्वाब
देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा
कब से बचा के रक्खी है इक बूँद ओस की
किस रोज़ तू वफ़ा को मिरी आज़माएगा
कागज़ की कश्तियाँ भी बड़ी काम आएँगी
जिस दिन हमारे शहर में सैलाब आएगा
दिल को यकीन है कि सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क
कोई फ़सुर्दा दिल ये ग़ज़ल गुनगुनाएगा