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क़िस्से गुलनार के / दिनेश सिंह

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पीपल के पके पात
पंछी पतझार के,
      थोड़ी ऋतु और अभी बाक़ी है
      उड़ने दो छंद ये बहार के ।

            फूल-फूल अगवानी
            शूल, खिंची पेशानी
            मौसम का जाने कब तक है--
                          दाना-पानी ।

पानी के पीछे हैं
क़िस्से गुलनार के !
      थोड़ी लय और अभी बाक़ी है
      उड़ने दो गीत नदि पार के ।

            भोरहरे की लाली
            माँज रहा है माली
            फूलों की आँखों में
            है पूजा की थाली
थाली के फल-फूल
रिश्ते अंगार के,
      थोड़ी-सी बर्फ़ अभी बाक़ी है
      गलने दो, दो पहर खुमार के ।