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[[Category:गज़ल]]
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क़ुर्बतों<ref>सामीप्य</ref> में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बेमेह्र<ref>निर्दयी</ref> कि रोने के बहाने माँगे
क़ुर्बतों<ref>सामीप्य</ref> में अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी जुदाई के ज़माने माँगे <br>चुके दिल वो बेमेह्र<ref>निर्दयी</ref> कि रोने के बहाने और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे <br><br>
अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी चुके यही दिल था कि तरसता था मरासिम <brref>प्रेम-व्यवहार,सम्बन्ध</ref>के लिएऔर मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगेअब यही तर्के-तल्लुक़<brref>संबंध-विच्छेद<br/ref> के बहाने माँगे
यही दिल था कि तरसता था मरासिम <ref>प्रेम-व्यवहार,सम्बन्ध</ref>हम न होते तो किसी और के लिए<br>चर्चे होते अब यही तर्केखल्क़त-तल्लुक़ए-शहर<ref>संबंध-विच्छेदशहरी जनता</ref> के बहाने तो कहने को फ़साने माँगे<br><br>
ज़िन्दगी हम न होते तो किसी तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दाऔर के चर्चे होते <br>खल्क़त-ए-शहरतू है कि सदा आइनेख़ाने<ref>शहरी जनतावह भवन जिसके चारों ओर दर्पण लगे हों</ref> तो कहने को फ़साने माँगे <br><br>
ज़िन्दगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दा<br>और तू है कि सदा आइनेख़ाने<ref>वह भवन जिसके चारों ओर दर्पण लगे हों</ref>माँगे<br><br> दिल किसी हाल पे क़ाने<ref>आत्मसंतोषी</ref> ही नहीं जान-ए-"फ़राज़"<br>मिल गये तुम भी तो क्या और न जाने माँगे<br><br>
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