Last modified on 27 जनवरी 2017, at 01:02

क़ैदी के पत्र - 5 / नाज़िम हिक़मत

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:02, 27 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक=चन्द्रबल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लो यह नौ बजा
चौक का घड़ियाल ठनका
जेल-कोठरी का द्वार किसी क्षण बन्द होगा
इस बार जेल में रहना हुआ है ज़रा ज़्यादा दिन का।
आठ साल हुए —
जीना उम्मीद का काम है, प्रिये,
जीना गम्भीर है तुम्हें प्यार करने-सा
सुन्दर है, आशाप्रद
तुम्हें मन में बसाना
लेकिन अब मेरा जी इसमें नहीं भरता
नहीं चाहता कि गाना सुनता ही रहूँ
अब मैं चाहता हूँ ख़ुद का गीत गाना !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह