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क़ैद से अपनी निकल पाए नहीं / महेश कटारे सुगम

क़ैद से अपनी निकल पाए नहीं ।
चाह कर भी हम बदल पाए नहीं ।।

दिल में उठते प्यार के तूफ़ान भी
वक़्त की शह पर मचल पाए नहीं ।
 
आपकी शर्तों में हम उलझे रहे
अपने साँचे में भी ढल पाए नहीं ।

सामने थी विष बुझी रानाइयाँ
हम सम्भल कर भी सम्भल पाए नहीं ।

एक हसरत रह गई क्वांरी सुगम
दो क़दम भी साथ चल पाए नहीं ।

26-02-2015