भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काँटक बन मे / बुद्धिनाथ मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:17, 15 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |संग्रह= }} Category: मैथिली भाषा [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लहुआ लिधुर भेल फूलक सपना
काँटक बन मे ।

टोलक टोल बबूर फुलायल
छटपट करइछ आमक पखिना
काँटक बन मे ।

छूटि धनुष गेल व्याधक कर सँ
देखि पियाक पियासल हिरना
काँटक बन मे ।

हमरे सँ ई दिन, ई रितु अछि
कटिते फसिल भेलौं हम अदना
काँटक बन मे ।

हरदिक रंग नहाओल विधु कें
ताम्रपत्र लिखि गेल अछि मदना
काँटक बन मे ।

कजरौटा सन एहि नगरक लेल
सूर्यक जन्म एक दुर्घटना
काँटक बन मे ।