भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काँट ही काँट बा जो डगर में / मनोज भावुक
Kavita Kosh से
Manojsinghbhawuk (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:54, 29 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} Category:ग़ज़ल <poem> काँट ही काँट बा जो डगर …)
KKGlobal}}
काँट ही काँट बा जो डगर में
फूल ही फूल राखीं नजर में
मन बना के ना देखीं उड़े के
जान अपने से आ जाई पर में
कुछ भरोसा त उनको प राखीं
जे बसल बाड़ें सबका जिगर में
देर होई मगर दिन ऊ आई
जब खुशी नाची आँगन में, घर में
हौसला, आस, विश्वास राखीं
होके निर्भय चलीं एह सफर में