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कां जूंला यैकन छाड़ी / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'

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मूल कुमाउनी कविता : कां जूंला यैकन छाड़ी

हमरो कुमाऊं, हम छौं कुमइयां, हमरीछ सब खेती बाड़ी
तराई भाबर वण बोट घट गाड़, हमरा पहाड़ पहाड़ी

यांई भयां हम यांई रूंला यांई छुटलिन नाड़ी
पितर कुड़ीछ यांई हमारी, कां जूंला यैकन छाड़ी

यांई जनम फिरि फिरि ल्यूंला यो थाती हमन लाड़ी
बद्री केदारै धामलै येछन, कसि कसि छन फुलवाड़ी

पांच प्रयाग उत्तर काशी, सब छन हमरा अध्याड़ी
सब है ठूलो हिमाचल यां छ, कैलास जैका पिछाड़ी

रूंछिया दै दूद घ्यू भरी ठेका, नाज कुथल भरी ठाड़ी
ऊंचा में रई ऊंचा छियां हम, नी छियां क्वे लै अनाड़ी

पनघट गोचर सब छिया आपुण, तार लागी नै पिछाड़ी
दार पिरूल पतेल लाकड़ो, ल्यूछियां छिलुकन फाड़ी

अखोड़ दाड़िम निमुवां नारिंग, फल रूंछिबाड़ा अघ्याड़ी
गोर भैंस बाकरा घर घर सितुकै, पाल छियां ग्वाला घसारी.