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काटि कसइली मिलाइ के चूना तहाँ हम बैठि के पान लगाइब / मन्नन द्विवेदी 'गजपुरी'

काटि कसइली मिलाइ के चूना तहाँ हम बैठि के पान लगाइब।
फागुन में जो लगी गरमी तोहके अँचरा से बयार डुलाइब।।
बदर जो बरसे लगिहें तोहसे बछरु घरवा में बन्हाइब।
भींजि के फागुन के बरखा तोहके हम गाके मलार सुनाइब।।