भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कान्हा दिवस / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:49, 24 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जन्माष्टमी को सार्थक करना
तो अपना जीवन सँवारो
छिप कर बैठा अन्तर में
उस कंस को तुम मारो
दही हांडी को फोड़कर
यूँ न गली-नालो में बहाओ
कान्हा भी तब खुश होगा
किसी भूखे को अगर खिलाओ
अमल करके अपने ऊपर
फिर तुम संदेश फैलाना
अन्तर्मन में पैदा करके ही
तुम कान्हा -दिवस मनाना