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कान्ह कूबरी के हिये हुलसे-सरोजनि तैं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

कान्ह कूबरी के हिए हुलसे-सरोजनि तैं
अमल अनन्द-मकरन्द जो ढरारै है ।
कहै रतनाकर यौं गोपी उर संचि ताहि
तामैं पुनि आपनौ प्रपंच रंच पारै है ॥
आइ निरगुन-गुन गाइ ब्रज मैं जो अब
ताकौ उदगार ब्रह्मज्ञान-रस गारै है ।
मिलि सो तिहारौ मधु मधुप हमारैं नेह
देह मैं अछेह विष विषम बगारै है ॥75॥