भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काबर मुड़ गडि़याये हस / नूतन प्रसाद शर्मा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:14, 9 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूतन प्रसाद शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तंय जोहत हस पर के मुंह ला का निच्‍चट कमजोर हस।
तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।

एक सुरुज हा मार भगाथे, अंधियारा के कई दल ला।
एक ग्रंथ हा टोर डारथे, अज्ञानता के कई घर ला।
अतका बात ला जान के काबर, बइठे बिल मं मुसुवा अस।
तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।

बघवा हा एके झन रहिथे पर हरिना रहिथे दस बीस।
तब ले बघवा बाजी मारत - हरिना ला देवत हे पीस।
तंय हा सवा सेर तब काबर, खड़े कलेचुप कांपथस।
तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।

जउन जगा तंय पांव जमाबे, भुइंया ले जल निकल जही।
ओ पानी ला बना सकत हस - अमरित गोरस दही मही।
अतका कूबत तोर मेर तब काबर मुड़ गडि़याये हस।
 तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।

तन मं लाल लहू रेंगत हे, हाड़ा नोहे लोहा आय।
छाती पथरा के समान हे, आंखी नोहे अंगरा ताय।
तंय पहाड़ अस तब फेर काबर पोनी असन उड़ावत हस।
 तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।

चल - चल आघू चलते जा तंय, का होगे हस एक्‍के झन।
तंय खत्‍तम सफलता पाबे , नाम लिही तोर कन कनकन।
जम्‍मों बात ला जान के काबर, आगू पग नइ लेगत हस।
 तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।