Last modified on 28 अक्टूबर 2016, at 22:50

काबर समाये रे मोर बैरी नैना मा / लक्ष्मण मस्तुरिया

काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा

झूलत रहिथे तोरे चेहरा
ए हिरदे के अएना मा
काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा

अपने अपन मोला हांसी आथे
सुरता मा तोर रोवासी आथे
का जादू डारे टोनहा तैं
ए पिंजरा के मैंना मा

काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा

आथे घटा करिया घनघोर
झूमर जाथे मंजूर मन मोर
पुरवईया असन आजे संगी
पानी हो के रैना मा

काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा

का होगे मोला तोर गीत गा के
नाचे के मन होथे
काम बुता मा मन नइ लागे
धकर धकर तन होथे
आके कुछु कहिते संगवारी
मया के बोली बैना मा

काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा