पँवारी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कारी-कलैया दारी अलसी को तेल
मनऽ जानी थी वा ते, आई गई बेला दारी।
ओनऽ पेअऽ गयो तेल, बात मनऽ जानी थी
दारी न पेय ऽ लियो तेल, दारी को आय गयो पेट
बात मनऽ जानी थी
घर को सैंय्या पूछय रण्डी, कोको लायो पेटऽ
बात मनऽ जानी थी