भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कारी-कलैया दारी अलसी को तेल / पँवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पँवारी लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कारी-कलैया दारी अलसी को तेल
मनऽ जानी थी वा ते, आई गई बेला दारी।
ओनऽ पेअऽ गयो तेल, बात मनऽ जानी थी
दारी न पेय ऽ लियो तेल, दारी को आय गयो पेट
बात मनऽ जानी थी
घर को सैंय्या पूछय रण्डी, कोको लायो पेटऽ
बात मनऽ जानी थी