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"कार्यकर्ता / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत" के अवतरणों में अंतर

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उधेड़ता है बखिया !
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सभी का जुलूस चलता  है उसके भेजे में
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जात, धर्म, दहेज़, अन्धश्रद्धा, निरक्षरता, ग़रीबी
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बेरोज़गारी, महँगाई, सभी के ख़िलाफ़
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लड़ता रहता है कार्यकर्ता
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नारेबाज़ी करता हुआ 
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आवाज़ ठेठ उसकी नाभी की जड़ से निकलती है
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ठण्ड, धूप, बारिश, तूफ़ान
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कभी भी नहीं होता उसके पास आराम
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भरी दोपहरी साईकिल पर पैदल मारता
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अखबारो को खबर पहुँचाता है
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सभा के लिए स्टेज सजाता है
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साउण्ड-सिस्टम चैक करता है,
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कुर्सियाँ लगाता है
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नेता के स्टेज पर पहुँचने पर
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नीचे सबसे आगे जाकर बैठता है
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सुनते-सुनते,
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कार्यकर्ता भाषण देने का देखता है स्वप्न
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मुम्बई, दिल्ली, वाशिंगटन तक सारी
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जानकारी जुटाकर रखता है कार्यकर्ता
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काम करते, सोच-विचारते, चर्चा करते-करते
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रोज़ थक जाता है कार्यकर्ता
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थकान मिटाने
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कभी-कभार उतार लेता है
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एक-दो पेग,
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देर रात थकाहारा
 
देर रात थकाहारा
 
घर पहुँचता है कार्यकर्ता  
 
घर पहुँचता है कार्यकर्ता  

02:23, 12 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

कार्यकर्ता सुबह देरी से उठता है और सभी के मुकाबले
देर रात तक पढ़ता रहता है अकेला
लैम्प जलाकर

पीकर चाय
थाली में परोसा बिना शिकायत चुपचाप खाकर
कार्यकर्ता
निकल पड़ता है घर से बाहर
पार्टी के दफ़्तर में आता है,
अख़बार पढता है
चाय की ऑर्डर दे आता है
चाय पीता है
सहभागी होता है
राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय विषयों की चर्चा में
चर्चा सुनता है मन लगाकर
शोषणकर्ता और सरकार सभी की
उधेड़ता है बखिया !

जुलूस के पहले
बैनर रंगवाता है और उन्हें चढ़ाता है डण्डियों पर
मार्क्स, फूले, शाहू, आम्बेडकर, चार्वाक, बुद्ध, साने गुरूजी
सभी का जुलूस चलता है उसके भेजे में
जात, धर्म, दहेज़, अन्धश्रद्धा, निरक्षरता, ग़रीबी
बेरोज़गारी, महँगाई, सभी के ख़िलाफ़
लड़ता रहता है कार्यकर्ता
नारेबाज़ी करता हुआ
आवाज़ ठेठ उसकी नाभी की जड़ से निकलती है

ठण्ड, धूप, बारिश, तूफ़ान
कभी भी नहीं होता उसके पास आराम
भरी दोपहरी साईकिल पर पैदल मारता
अखबारो को खबर पहुँचाता है
सभा के लिए स्टेज सजाता है
साउण्ड-सिस्टम चैक करता है,
कुर्सियाँ लगाता है
नेता के स्टेज पर पहुँचने पर
नीचे सबसे आगे जाकर बैठता है
सुनते-सुनते,
कार्यकर्ता भाषण देने का देखता है स्वप्न

मुम्बई, दिल्ली, वाशिंगटन तक सारी
जानकारी जुटाकर रखता है कार्यकर्ता
काम करते, सोच-विचारते, चर्चा करते-करते
रोज़ थक जाता है कार्यकर्ता
थकान मिटाने
कभी-कभार उतार लेता है
एक-दो पेग,

देर रात थकाहारा
घर पहुँचता है कार्यकर्ता
घर पर सभी होते हैं सोए हुए
बस माँ जाग रही होती है
आहट लेते
लगाया हुआ खाना चुपके से खाता है कार्यकर्ता
माँ बतियाते रहती है यहाँ-वहाँ की
बहन के लिए आया रिश्ता
दहेज़ देने के विषय में
सावन में रह गई सत्यनारायण की कथा के बारे में
चाची के शरीर में आया हुआ साया
माघ महीने के गुरूवार
नवरात्र के उपवास
रोज़ करती है अलग-अलग बातें
कहती है बहुत कुछ

जल्द ही कामधन्धा ढूँढो
शादी के लिए ज़रूरी है
अब मुझसे नहीं निभता,
ये रोज़-रोज़

थाली में हाथ धोकर
डकार देता है कार्यकर्ता
पूरा घर सो रहा होता है
जलता रहता है
देर तक कार्यकर्ता का टेबल-लेम्प
दुनिया बदलने के सपने देखने की ख़ातिर
सो जाता है
वह
माँ की बातें याद करते करते

अपनी लड़ाई दुनिया बदलने को लेकर है,
घर बदलने को लेकर नहीं
ऐसा ख़ुद ही को समझाकर
सुबह फिर से
साईकिल पर पेडल मारता है कार्यकर्ता।

मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत