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कालाधन / अखिलेश्वर पांडेय

रोटी हमारा पोषण करता है
रोटी देने वाले हमारा शोषण
चुल्हे की आग डराती है हर रोज
जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं
जलावन कहां से आयेगा?
'जनधन' खाता अब 'अनबन' हो गया है
संदेह की बिजली गरज रही
किसी ने बिना कहे-बताए
डाल दिए लाखों रुपये
पुलिस, बैंक, नेता, पड़ोसी
सब पूछ रहे मेरी कैफियत
क्या कहूँ मैं-
घरवाली के इलाज को एक पैसा नहीं
बिटिया के फटे कपड़ों से झांक रही लाचारी
माँ लड़ रही है टीबी से
कालाधन क्या होता है-
मुझे क्या मालूम!