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कालाहाण्डी-5 / चन्दन सिंह

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उसकी भूख
एक तेज आँच की तरह
सुलगती है
जिसपर दुनिया की कोई भी चीज़
पक सकती है

अगर तुम सूँघ सको
तो तुम्हें लगेगा
चट्टान पक रही है
जंगल पक रहा है
चाँद पक रहा
है
हो सकता है अचानक वह
कलछुल में कुछ तारों को ही डाल
अँगुलियों से मीस-मीसकर पता करने लगे
कि तारें
अभी सींझें हैं या नहीं