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काला ईश्वर / याँका सिपअकौ / वरयाम सिंह

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हब्शियों का भी एक मन्दिर था छोटा सा पुराना
पर जगह बहुत कम थी उसके भीतर ।
कहा गोरों ने कालों से —
हम नया मन्दिर बनाएँगे तुम्हारे लिए
और भेंट करेंगे तुम्हें नया ईश्वर ।

हब्शियों का भी एक मन्दिर था छोटा सा पुराना
याद करते थे वे जब उसे
अटक जाता था कुछ गले में,
गोरों ने कालों के लिए बनाया मन्दिर
बहुत ऊँचा, आसमान जितना ऊँचा ।

सबकुछ चमकता था इस मन्दिर के अन्दर-बाहर
सफ़ेद रंग और मधुर उमंग में
पर कालों को तो चाहिए था काला मन्दिर
और काला ही चाहिए था ईश्वर उन्हें ।

खड़ा था चुपचाप, धुएँ की तरह भारहीन
स्वर्ण पात्रों का यह विराट भण्डार,
पर हब्शी इस मन्दिर में पूजा करने नहीं
बल्कि आते थे झाँकने अपने सपनों और अतीत में ।

ख़ुश थे गोरे कि इस मन्दिर जैसा दूसरा नहीं
पर हब्शियों को अच्छा नहीं लगता था उसका फ़र्श
कितने ही फिसल चुके थे उसपर हब्शी
टूट चुकी थीं टाँगें न जाने कितनों की ।

कितनी कोशिश की गोरे ईश्वर ने !
पर उसके प्रवचन सुने नहीं हब्शियों ने
कालों को तो चाहिए था सिर्फ़ काला मन्दिर
और काला ही चाहिए था ईश्वर उसके भीतर ।

एक नया मन्दिर बनाया अपने लिए हब्शियों ने
बहुत गहरे, ज़मीन के भीतर
एक गुप्त प्रवेशद्वार बनाया लकड़ी का,
केवल हब्शियों को मालूम था उसके बारे में ।

पुजारियों को मिल गई थी खुली जगह,
पिघल चुकी थी ग्रन्थि भय की,
राहत मिलने लगी थी हब्शियों को इस काले मन्दिर में
मुस्कुराने लगा था काला ईश्वर उनकी तरफ़ ।

रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह