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कालीदाय के अँगना चनन घन हे गछिया / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कालीदाय<ref>काली माता</ref> के अँगना चनन घन<ref>घना</ref> हे गछिया, ओहि चढ़ि कोयली मड़राय हे।
डारी डारी काली देबी फनन<ref>फंदा</ref> लगाबै, पाते पाते कोयली नुकाय<ref>छिपती है</ref> हे॥1॥
नहिं तोरा मारबौ कोयली, नहिं तोरा पिटबौ कोयली।
राखबो में हिरदै लगाय हे॥2॥
भोजन देबौ कोयली, सक्कर बान्हल लाडू<ref>लड्डू</ref>, औरो देबौ खोआ औंटल दूध हे।
राखबै कोयली तोरा हिरदै लगाय हे।
कहें कहें<ref>कहो कहो</ref> हे गे कोयली, काली के उदेसबा<ref>पता; ठिकाना</ref>, कही देबौ काली दाय के बास हे॥3॥
कौने फूल ओढ़न कौने फूल पहिरन, कौने फूल देबी के सिंगार हे।
बेली फूल ओढ़न, चमेली फूल पहिरन, अरहुल फूल देबी के सिंगार हे॥4॥
कथि चढ़ि ऐती देबी, कहाँ भै<ref>कहाँ होकर, कहाँ पर</ref> बैठती<ref>बैठेंगी</ref>, कथि लै करब समोध<ref>संतोष; सम्मान; अभ्यर्थना</ref> हे।
रथ चढ़ि ऐती देबी, सीरा<ref>देवता का स्थान</ref> आगू बैठती, धूप लै करब समोध हे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>