सब थे
उस घड़ी
जब
बरसी थी
आकाश से
अथाह मिट्टी
सब हो गए जड़
मिल गए
बनते थेहड़ में
आज फ़िर
अपने ही वशंजो को
खोद निकाला है
कस्सी
खुरपी
बट्ठल-तगारी ने !
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा
सब थे
उस घड़ी
जब
बरसी थी
आकाश से
अथाह मिट्टी
सब हो गए जड़
मिल गए
बनते थेहड़ में
आज फ़िर
अपने ही वशंजो को
खोद निकाला है
कस्सी
खुरपी
बट्ठल-तगारी ने !
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा