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कालीबंगा: कुछ चित्र-15 / ओम पुरोहित ‘कागद’

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सब थे
उस घड़ी
जब
बरसी थी
आकाश से
अथाह मिट्टी

सब हो गए जड़
मिल गए
बनते थेहड़ में

आज फ़िर
अपने ही वशंजो को
खोद निकाला है
कस्सी
खुरपी
बट्ठल-तगारी ने !
 

राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा