आई होगी
राजा की मदद
अपघटित के बाद
आज की तरह
कालीबंगा में
मिला होगा
सूना थेहड़
अनबोला सिसकता
अंदर ही अंदर
पर कौन सुनता
सुनता हे कौन
अंदर की बात
बस लांघते रहे थेहड़
बिचारे दिन-रात
काल को टरकाते
पन्ने कौन पलटता
पंचाग के
दीमक की भूख
मिटी कुछ दिन।
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा