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कालीबंगा: कुछ चित्र-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’

मिट्टी का
यह गोल घेरा
कोई मांडणा नहीं
चिह्न है
डफ़ का
काठ से
मिट्टी होने की
यात्रा का।
 
डफ़ था
तो भेड़ भी थी
भेड़ थी
तो गडरिए भी थे
गडरिए थे
तो हाथ भी थे
हाथ थे
तो सब कुछ था

मीत थे
गीत थे
प्रीत थी
जो निभ गई
मिट्टी होने तक।
 
 
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा