भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कालीबंगा: कुछ चित्र-9 / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ुदाई में
निकला है तो क्या
अब भी जीवित है
कालीबंगा शहर

जैसे जीवित है
आज भी अपने मन में
बचपन

अब भी
कराता है अहसास
अपनी आबादी का
आबादी की चहल-पहल का

हर घर में पड़ी
रोज़ाना काम आने वाली
उपयोगी चीज़ों का

चीज़ों पर
मानवी स्पर्श
स्पर्श के पीछे
मोह-मनुहार

सब कुछ जीवित हैं
कालीबंगा के थेहड़ में।

 
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा