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काली भैंस / कुमार मुकुल

इन पठारी इलाकों में
घि‍स कर चिकनी हो चुकी चट्टानें
कैसे बिखरी हैं
जैसे मवेशी बैठे हों इधर-उधर

लगता है कि मैं दौडूंगा
और काली भैंस सी पसरी चट्टान पर
जा बैठूंगा

बैठते ही
चल देगी वह उठकर
सामने बहती नदी की ओर
रास्ते में
सीग उग आएंगे उसको
जिन्हें पकडकर मैं
नहाउंगा नदी में
डूब - डूब ।
1993