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काली लड़की / कुमार अंबुज
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काली लड़की
अपने सामाजिक अंधकार से निकलकर
एक काली लड़की
मेरे स्वप्न के उजास में प्रवेश करती है
उजास में रात की कालिमा घुल जाती है
दमकती है काली लड़की की देह
सप्त-धातु की बेजोड़ मूर्ति की तरह
चमकता है काली लड़की का शिल्प
बारिश में बिजली की तरह मुस्कराती है वह
हंसों की एक पंक्ति काले आसमान से गुज़र जाती है
काली लड़की की आँखें गहरी काली हैं
वे मेरे स्वप्न की सुरक्षा से बाहर नहीं आना चाहतीं
उन आँखों में गौर-वर्ण के अनुभवों का
ठोस अँधेरा है
जो लड़की के उजले सपनों में टूट-टूटकर गिरता है
एटलस की तरह घूमती हुई रात्रि हर बार
मेरे स्वप्न के अफ्रीका पर आकर
ठहर जाती है।
(1990)