भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काळ बरस रौ बारामासौ (फागण) / रेंवतदान चारण

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:27, 8 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेंवतदान चारण |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लूरां फागण लेवणी कांमण करती कोड
कांण काळ राखी नहीं आई फागज ओढ

रम्मत मंडावै रावळा काळ गिणै नहीं कोय
सांग लावै केई सांतरा हरख घणै रौ होय

नर नाचै संग चंग रै लेवै लुगायां लूर
मिनख कुमांणस काळ नै राखै कोसां दूर

फागण में फगडा करै काळ बडौ विकराळ
मरजादा छोडै मिनख तिन तिन कूदै ताळ