भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काळ / रेंवतदान चारण

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 16 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रेंवतदान चारण }} {{KKCatRajasthaniRachna}} {{KKCatKavita‎}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आभै ऊपर भमै गिरजड़ा, चीलां उडती जाय
पग-पग ऊपर ल्हास मिनख री, कुत्ता माटी खाय
लूट, डकैती, खून, चोरियां, लाय लगी तो झाळोझाळ
भूख भचीड़ फिरै खावती, नाचै झूमै सौ-सौ ताळ
सुगनचिड़ी सूरज नै पूछ्यौ, गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला, ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै, जीवण री पड़गी हड़ताल ?
हिरणी बोली रया करै कंईं, रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

जेठ, असाढां आंधी बाजी, खीरां तपियौ तावड़ियौ
बाळी लूआं हिये रमाई, रैण रेत रौ रावड़ियौ
पग उरबांणा, बळी चांमडी, बळ-बळ हुयग्यौ छाळौ
इण आस में सांसा अटक्या, आवैला बरसाळौ
आंखड़ियां पथराई, बंधगी पांणी आडी पाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला, ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै, जीवण री पड़गी हड़ताळ ?
हिरणी बोली रया करै कंई, रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

सदा सुहांणौ लूबै सांवण, दिन आवै अलबेला
मिनख ममोल्या बाड़ बेलड़ी, करै मनां रा मेळा
प्रीत बावळी हुयनै धरती, आपै में नहिं मावै
पण बिरखा बैरण अैड़ी रूठी, पीड़ कही नीं जावै
सपनै में हरियै सांवण रा, आवै है जंजाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै, जीवण री पड़गी हड़ताळ ?
हिरणी बोली रया करै कंई, रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

धरती नै वैराग सूझियौ, घर-घर जड़ग्या ताळा
काळ झमतौ रमै आंगणै, भूत बण्या रखवाळा
मिनख मारणौ, खोस खांवणौ, चोरी हंदा रहग्या कांम
रोटी मोटौ तीरथ हुयग्यौ, गंगा जमना तीनूं धांम
काळ बरस में भूखा धाया, हुयग्या अेकण ढाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताल ?
हिरण बोली रया करै कंईं, रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

इतरा दिन तौ चांद लागतौ, चंन्द्रमुखी रा मुखड़ा ज्यूं
आज भूख रै कारण फीकौ, लागै रोटी टुकड़ा ज्यूं
भूखी बिलखी आंखड़ियां में, सूरमौ कदै न छाजै
नैण कंवळ री उपमा देतां, हंसी फूल री जाजै
देख गिगन रौ आधौ चंदा, मंगता हाथ पसारै
हिम्मत करनै दौड़ण लागी, भूख मौत रै लारै
धरती ऊपर धरणौ दीनौ, आधेटै में थमती चाल

सुगनचिड़ी सूरज नै पूछयौ, गिरजां नै पूछयौ कंकाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै, जीवण री पड़गी हड़ताल ?
हिरणी बोली रया करै कंई, रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

घर छूटा घरबार छूटग्या, आस छूटगी जीवण री
कयौ हुयनै घोळियौ, हिम्मत कीनी पीवण री
मिनखा तन नै मिटती बेळा, जीत जैर में दीसी
फांसी चढतां फंदौ बोल्यौ, मत गिण मौत इतीसी
कूदण लागौ मिनख कुवा मे, बोल उठी परछांई
ऊंडौ खाडौ भरणी चावै, पेट भरै नीं कांईं
भंवळ खायनै पड़गी काया, आंख्यां में आयौ जंजाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला, ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यू मौत री मरजी माथै, जीवण री पड़गी हड़ताळ ?
हिरणी बोली रया करै कंई, रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

पांणी पी-पी जापौ काढ्यौ, हियै दूध री सूखी धार
टाबर रोयौ भूखां मरतौ, मन बिलमावण लागी नार
बेटो मां नै दोसी जांणै, चीसां कर-कर रोवै
खाली बोबो चूंघै कद तक, खबर कठा तक होवै
रीसां बळतौ किरड़ खायगौ, नैनौ रूप कियौ विकराळ
मां हालरियौ गाती रैगी, होठ लोई सूं होयग्या लाल
ममता बोली सोच करै क्यूं , खून व्रथा नहिं जावैला।
होठां चस्को भूंडौ लागौ, रूळौ राज गिट जावैला
खून दूध सूं मिठौ लागै, हंसतौ-हंसतौ पीग्यौ बाळ
सुगनचिड़ी सूरज नै पूछ्यौ, गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै, जीवण री पड़गी हडताळ ?
हिरणी बोली रया करै कंई, रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

कद सूं देख काळ धरा रौ, आभौ इतरौ आगौ
पण अणचेतां नै समय कठै कै देखै काळ अभागौ
उगतौ ढळतौ सूरज देखै, मांणस तड़फा तोड़ै
प्रीत तूटती देखै चंदा, छैल कांमणी छोड़ै
मरतौ हिचकी लेवै टाबर, तूटै नभ मे तारौ
बेचै रमणी लाज, चांनणौ कम पड़ग्यौ चंदा रौ
सुगनचिड़ी सूरज नै पूछयौ, गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला, ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै, जीवण री पड़गी हड़ताळ ?
हिरणी बोली रया करै कंईं, रखवाळा रौ पड़ग्यौ काळ।
रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ, रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।