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काव्यपाठ / विस्साव शिम्बोर्स्का

या तो आप एक मुक्केबाज़ हों या हों ही नहीं उस जगह
बस. हे कला की देवी! कहां है 'हमारी' जनता?
कमरे में बारह लोग, आठ सीटें ख़ाली -
समय हो चला है इस साम्स्कृतिक कार्यक्रम को शुरू किया जाए.
आधे लोग इसलिए भीतर हैं कि बाहर बारिश चालू है
बाक़ी रिश्तेदार हैं. हे कला की देवी!

यहां मौजूद स्त्रियों को चीख़ना और उत्तेजित होना अच्छा लगता,
पर वह मुक्केबाज़ी की चीज़ है. यहां उनका व्यवहार शालीन होना चाहिये.
दान्ते* की 'इन्फ़र्नो' इन दिनों रिंग के सबसे नज़दीक है
उसकी 'पैराडाइज़' भी. हे कला की देवी!

उफ़, मुक्केबाज़ नहीं बल्कि कवि होना,
जीवन में बामशक्कत कविताई करते जाने की सज़ा पा चुकना
मांसपेशियों की कमी के कारण दुनिया को यह जतलाने पर विवश कर दिया जाना
कि हाईस्कूल के कवितापाठ्यक्रम में तकदीर की मदद से उसकी कविता जगह पा लेगी.
ओ कला की देवी!
ओ नन्ही चोटी वाले फ़रिश्ते पेगासस**!

पहली पंक्ति में, एक प्यारा सा बूढ़ा हल्के ख़र्राटे ले रहा है,
वह सपने में अपनी पत्नी को दुबारा जीवित देख रहा है. इसके अलावा
वह उसके लिए उसका पसन्दीदा केक बना रही है.
भट्टी सुलग चुकी, पर ध्यान से - उसका केक मत जला देना! -
हम काव्यपाठ शुरू कर रहे हैं, हे कला की देवी!

[*.दान्ते (१२६५-१३२१) इटली के महान कवि थे. 'इन्फ़र्नो' और 'पैराडाइज़' उनकि कालजयी रचनाओं में शुमार हैं.

    • .पेगासस: यूनानी गाथाओं में कला की देवियों का वाहन, उड़ने वाला घोड़ा जो अतिकल्पनाशीलता का प्रतिनिधि माना जाता है]


अनुवाद: