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काश कि पहले लिखी जातीं ये कविताएं-2 / प्रियदर्शन
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वह एक झील थी जो आंखों में बना करती थी
इंद्रधनुष के रंग चुराकर सपने अपनी पोशाक सिला करते थे
कामनाओं के खौलते समुद्र उसके आगे मुंह छुपाते थे
एक-एक पल की चमक में न जाने कितने प्रकाश वर्षों का उजाला बसा होता था
जिस रेत पर चलते थे वह दोस्त हो जाती थी
जिस घास को मसलते थे, वह राज़दार बन जाती थी
कल्पनाएं जैसे चुकती ही नहीं थीं
सामर्थ्य जैसे संभलती ही नहीं थी
समय जैसे बीतता ही नहीं था
वह भी एक जीवन था जो हमने जिया था