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काश कि माहौल इतना ही साज़ग़ार हो जाता / शमशाद इलाही अंसारी

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काश कि माहौल इतना ही साज़ग़ार हो जाता
हर एक दिल मौहब्बत का तलबग़ार हो जाता

मेरे भी आँगन में महके खुश्बू अमन चैन की
तेरे भी चमन में मौसम खुश गवार हो जाता

तरक्की ए रफ़्तार की बुलबुल मेरी भी हो तेरी भी हो
जंग मुफ़लिसी से होती तो हर कोई मददगार हो जाता

वो आता नहीं गर बस्ती में भेष बदल बदल कर
मेरे पडौस का लडका भी बरसरे रोज़गार हो जाता

हैं वो भी बदहाल जो बिछड़ गये लड़ कर हमसे
साथ रहकर यहीं लड़ते तो मसला पार हो जाता

"शम्स" सुन चुका बहुत तराने बेखुदी और बर्बादी के
तू होता जो पास मेरे मैं भी अफ़साना निगार हो जाता