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का होई जो अँखियन के ई भेद खुलल त / रामरक्षा मिश्र विमल
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का होई जो अँखियन के ई भेद खुलल त
कुछुओ ना बाँची सागर के जल खउलल त
कइसे बतलाईं तोहरा से प्यार करींले
डर लागेला तहरा कतहीं खार लगल त
जी भर के रो लींले घर के अँतरा में हम
जब जब नेह समंदर आँतर में फफकल त
का जाने कहियो पढ़वा पाइबि कि नाहीं
पाती खोलत जो फिर से नैना छलकल त
कइसन हऽ ई प्यार उमर के ध्यान रहे ना
ए रिश्ता पर दुनिया के पाथर बरसल त