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कितना आसान है / नीता पोरवाल

कितना आसान है
घट-घट में धड़कते मेरे अनंत रूप को
चार दीवारी में कैद कर देना

बना देना प्रतिमा
प्राण प्रतिष्ठित कर
फिर बोल देना मुझे ‘स्टेच्यु’
आह! कितना आसान है
फिर मेरे समस्त जीवों के प्रति क्रूर हो जाना

कोई लाख लिख दे बड़े-बड़े अक्षरों में-
'मना है प्रतिमाओं पर जल व प्रसाद चढ़ाना'
फिर भी अधीर हो उड़ेल देना जल
भर देना नयनों में सिंदूर
सिर पर फिक्क से फोड़ देना बताशा
आह! कितना आसान है
मेरी आराधना कर लेना

भूखे-लाचार मेरे बच्चों को दुत्कार
भेंट में देना मुझे सोने-चांदी के छत्तर
सामने सजा देना छप्पन भोग
आह! कितना आसान है
फिर मुझे प्रसन्न मान लेना

साल में दो बार
कन्याओं के पूज लेना पाँव
ओढा कर चुनरी
आह! कितना आसान है
चूनर को फिर बेहिचक तार-तार कर देना

जीते जी भूले से भी
माँ-बाबा की सुधि न लेना
फिर अनहोनी के भय से
बरस में एक बार जिमा देना वामन
आह! कितना आसान है
तुम्हारा हर ऋण से उद्धार हो जाना

ओ मेरे बच्चे!
नवधा भक्ति में
ये कौनसी और कैसी अलबेली है
तुम्हारी भक्ति
तुम्हारी ये आराधना?