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"कितना निठुर यह उपहास / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर

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अश्रु-'कण' कहकर जिसे  
 
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सूक्ष्म रूप धरे वही था -
 
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::::हृदयहारी हास !
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स्वप्न-सुख की आस में
 
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वह गया नित लौट -
 
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शत-शत बार आकर पास !
 
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:::::('रूप-अरूप)
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10:06, 25 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


कितना निठुर यह उपहास !
जो अजाने ही गया, वह था मधुर मधुमास !
कितना निठुर यह उपहास !!

अश्रु-'कण' कहकर जिसे
मैंने बहाया हाय !
सूक्ष्म रूप धरे वही था -
हृदयहारी हास !
कितना निठुर यह उपहास !

स्वप्न-सुख की आस में
सोया रहा दिन-रात,
वह गया नित लौट -
शत-शत बार आकर पास !
कितना निठुर यह उपहास !
('रूप-अरूप)