Last modified on 23 जुलाई 2021, at 09:55

कितने अरमाँ / रेखा राजवंशी

कितने अरमां पिघल के आते हैं
लोग चेहरे बदल के आते हैं

अब मिरे दोस्त भी रक़ीबों से
जब भी आते, संभल के आते हैं

जब कोई ताज़ा चोट लगती है
मेरे आंसू मचल के आते हैं

आज कल रात और दिन मेरे
तेरी यादों में ढल के आते हैं

दिल में जब टीस उठती है कोई
चंद मिसरे ग़ज़ल के आते हैं

मुद्दतों इंतेज़ार था जिनका
मेरी मय्यत पे चलके आते हैं