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कितने दिन विश्राम बचा है / राम लखारा ‘विपुल‘

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ओ सराय के मालिक ! कर दो जल्दी से अपना लेखा भी,
या फिर इतना उत्तर दे दो कितने दिन विश्राम बचा है?

पीड़ा के साहूकारों की
रोज दिहाड़ी करने में,
स्वप्न महल की दीवारों में
श्रम की ईंटे धरने में,
सुख की खिड़की चाही थी पर
मानचित्र में नहीं मिली,
वरना कितनी देर बची थी
अपना भाग्य संवरने में।
गिरवी है जो पूंजी मेरी ब्याज काटकर लौटा दो तुम
या फिर इतना उत्तर दे दो कितने दिन का काम बचा है?

चारों तरफ आग फैली है
और मुखर है बदहाली,
दसों दिशा में रावण बैठे
और चतुर छलिया बाली,
दुख की दूरी सौ योजन भी
पहले जैसी कहां रही?
फिर भी इच्छा अंगद लौटा
लेकर अपने कर खाली।
सीता तो कब से पाताली फिर भी मैं जी लूंगा लेकिन
मुझको इतना बतला दो अब किसके मन में राम बचा है?

सौ सौ घाव सहे तन मन पर
लेकिन हंसते अधर रहे,
जीत हार के किस्से लेकर
हम भी घर से गुजर रहे,
जाते जाते गीत शिला हम
देखो धरते जाते है,
जिससे अगली पीढी को भी
इस किस्से की खबर रहे।
थक कर तन यह दुहरा होता सारे अस्त्र शस्त्र छिन जाए
या फिर इतना समय बता दो कितने दिन संग्राम बचा है?