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किताबें / निशान्त जैन

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अकेलेपन की सच्ची साथी, होती भाई किताबें,
ज्ञान का सागर घुमड़-घुमड़कर ढोती भाई किताबें।
 
सारी मुश्किल-सवाल सारे, पलभर में निपटाएँ,
हरपल-हरदम साथ निभाकर, सचमुच मन को भाएँ।
 
कहती मुझमें ही खो जाओ, करना नहीं बहाना,
अजब-अनोखी दुनिया का मैं, दूँगी नया खजाना।
 
जो कुछ भी तुम जान न पाते, सबका भेद बताऊँ,
बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सबका ज्ञान बढ़ाऊँ।
 
पर्वत-नदी-ध्रुव या मरुस्थल, छुपता न कुछ मुझसे,
ताजमहल-मीनार पीसा की, बचता न कुछ मुझसे।
 
सीखो मुझसे हिलना-मिलना, मुसकाना खिल जाना,
कोई कहे, किताबी कीड़ा, पर तुम न घबराना।
 
उनके लिए अंगूर हैं खट्टे, इसीलिए हैं कहते,
पढ़नेवाले बच्चे जग में सबसे आगे रहते।