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किधर जा रही हैं इधर आइएगा / चेतन दुबे 'अनिल'

किधर जा रही हैं इधर आइएगा।
न हुस्नो - अदा से यों भरमाइएगा।

जरा पास आओ, नजर तो मिलाओ
न घबराइएगा, न शरमाइएगा।

मुझे ढाई आखर ही हैं सबसे प्यारे
मुझे भोले बच्चे - सा बहलाइएगा।

फफोले पड़े हैं जो मेरे हृदय में
उन्हें अपने हाथों से सहलाइएगा ।

तुम्हारी कसम मैं तुम्हीं पर फिदा हूँ
जरा हाथ अपना इधर लाइएगा।

सनम! मैंने देखा कहाँ कितना पानी
न झूठी कसम इस तरह खाइएगा।

थमाकर शुभे! हाथ में हाथ अपना
न यों जाइएगा - न यों जाइएगा।