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किनका के एहो दूनूँ कुवँरा जनक पूछे मुनि जी से / मगही

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

किनका<ref>किसका</ref> के एहो<ref>ये</ref> दूनूँ कुवँरा<ref>कुमार, पुत्र</ref> जनक पूछे मुनि जी से॥1॥
गाई के गोबर अँगना निपावल, गजमोती चउका पुरावल<ref>पूर्ण करना, भरना, बेदी की आकृति से अल्पना करना</ref>।
धनुस देलन ओठगाँई<ref>उठँगा दिया, किसी चीज के सहारे रख दिया</ref> जनक पूछे मुनि जी से॥2॥
जे एहो धनुस करत तीन खंड, सीता बियाह घरवा ले जायत हो।
किनका के एहो दूनूँ कुवँरा, जनक पूछे मुनि जी से॥3॥
उठला सिरी रामचन्दर धनुस उठवला।
धनुस कयला<ref>किया</ref> तीन खंडा, जनक पूछे मुनि जी से॥4॥
भेलो<ref>हुआ</ref> बियाह, चलल राम कोहबर<ref>विवाह सम्पन्न हो जाने पर दुलहा-दुलहिन का वह घर, जिसमें कुल-देवता की पूजा तथा कुछ अन्य विधियाँ सम्पन्न की जाती हैं</ref> मुनि सब जय जय बोले।
अब सिय होयल<ref>हो गया</ref> बियाह, जनक पूछे मुनि जी से॥5॥

शब्दार्थ
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