Last modified on 25 दिसम्बर 2010, at 22:10

कियांग नदी पर बिछोह / एज़रा पाउंड

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:10, 25 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एज़रा पाउंड |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> को-काकू-रो से जा …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

को-काकू-रो से जा रहा है पच्छिम को-जिन,
नदी पर धूम्र-पुष्प धुँधले हो गए हैं ।
उसके एकाकी पाल के पीछे छिप गया है दूर का आकाश ।
और अब मुझे दिखती है केवल नदी,
यह लम्बी कियांग नदी, स्वर्ग तक पहुँचती हुई ।

(रिहाकू)

अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीलाभ