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किसान / लखनलाल गुप्त

भारत के जममोन किसन्हा भाई, खेत मं आईबाद अन्न उपजाबा।
भारत के फौज सिपाही खटर, मताई म सोना उपजवा॥

आजादी के रद्दा बर सब, खेत पार ला खूबिच बढ़ावा।
खूब कमाके अन्न देश मां, अन्ने अन्न के भेंट चढ़ावा॥

अब हाथ मां हाथ धरे के बेरा, चित को नाइहेन सुना किसान।
तूहरेच मिहनत के बल मां, भारत गरजत हे गुना किसान॥

एक्कक दना ज़ोर के राखही, ताऊने बनही गुनी किसान।
बिपत देश के हरवइया, सीरतों, कहवाहा तुही किसान॥

सोना-चाँदी रुपिया पइसा, के चिंता झन करा किसान।
धान गेहूं के उपज बढ़ाके, कोठी ला तुं भरा किसान॥

फौज सिपाही अन्न ल खांही, हो जाही जम्मा बलवान।
तब दुश्मन ला रऊंद रऊंद के, करके रही निचाट, पिसान॥