भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसान / विश्वनाथ प्रसाद शैदा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:55, 25 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथ प्रसाद शैदा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भइया! दुनिया कायम बा किसान से। हो भइया
तुलसी बबा के रमायन में बाँचऽ, जाहिर बा सास्तर पुरान से।
भारत से पूछऽ, बेलायत, से पूछऽ, पूछऽ ना जर्मन जापान से।
साँचे किसान हवन, तपसी-तियागी मेहनत करेलें जिया जान से।
हो भइया! दुनिया कायम बा किसान से॥
जेठो में जेकरा के खेते में पइबऽ, जब बरसेले आगि असमान से।
हो भइया॥
झमकेला भादो जब चमकी बिजुलिया, हटिहें ना तनिको मचान से।
भइया, पूसो में माधो में खेते ऊ सुतिहें डरिहें ना सरदी-तूफान से।
हो भइया॥
दुनिया के दाता किसाने हवन जा, पूछऽन पंडित महान से।
हो भइया॥
गरीब किसान आज भूखे मरत बा, करजा गुलामी-लगान से।
हो भइया॥
होई सुराजऽ किसान सुख पइहें, असरा रहे ई जुगान से
भारत के ‘शैदा‘ किसान सुख पावसु बिनवत बानी भगवान से
हो भइया॥