किसी का प्यार बसा लो तुम अपने सीने में
बगैर प्यार के रक्खा भी क्या हैं जीने में
किसी से क्या कहे हम कश्मकश में उलझे है
मजा जो मिलता हैं छुप छुप के अश्क़ पीने में
हजारो ख़्वाब सजाये थे अपनी पलकों पर
अब उनकी राख इकट्ठा हुई हैं सीने में
हमारी कश्ती ए दिल का तो अब खुदा हाफिज़
उतर के आ गया तूफ़ान खुद सफ़ीने में
तुम इससे दूर ही रहना सिया उभर ना सके
हसद के दाग तेरे जिस्म के नगीने में