भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी की जिं़दगी से हम / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छबीले।
मोर पंखी पल
किसी की जिं़दगी से हम
चुरा लाये
अपनी मुट्ठियों में बंद
कर वे अनकहे
से छंद
दिल की पुस्तिका में
हम छुपा लाये
नशीले!
इन्द्रधनुषी पल
कि जैसे ज्योति के निर्झर
उजालों में नहा आये
रंगीले।
किरण पंखी पल
बरसते नेह के बादल
कलुष सारा बहा आये
किसी की जिं़दगी से हम
चुरा लाये चुरा लाये।