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किसी के दर्द में रो उठ्ठूँ कुछ ऐसी तर्जुमानी दे / ज्ञान प्रकाश विवेक

किसी के दुख में रो उठ्ठूँ कुछ ऐसी तर्जुमानी दे
मुझे सपने न दे बेशक, मेरी आँखों को पानी दे

मुझे तो चिलचिलाती धूप में चलने की आदत है
मेरे भगवान ! मेरे दोस्तों को रुत सुहानी दे

ये रद्दी बीनते बच्चे जो फुटपाथों पे सोये हैं
तू इनको कुछ नहीं देता तो तो अपनी मेहरबानी दे

मेरे भगवान ! तु्झसे माँगना अच्छा नहीं लगता
अगर तू दे सके तो ख़ुश्क दरिया को रवानी दे

यहाँ इन्सान कम , ख़रीदार आते हैं नज़र ज़्यादा
ये मैंने कब कहा था मुझको ऐसी राजधानी दे.