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किसी ने देख लिया था जो साथ चलते हुए / शहबाज़ ख्वाज़ा

किसी ने देख लिया था जो साथ चलते हुए
पहुँच गई है कहाँ जाने बात चलते हुए

सफ़र सफ़र है कभी राएगाँ नहीं होता
सर-ए-सहर चली आई है रात चलते हुए

सुना है तुम भी इसी दश्त-ए-ग़म से गुजरे हो
सो हम ने की है बड़ी एहतियात चलते हुए

हम अपनी उखड़ी हुई साँसों को बहाल करें
कहीं रखे तो सही काएनात चलते हुए

हवा रुकी तो अज़ब हुस्न था मगर ‘शहबाज़’
गिरा गई है कई सूखे पात चलते हुए