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किसी ने बर्फ़ सी भर दी थी तोपों के दहानों में / कांतिमोहन 'सोज़'

किसी ने बर्फ़ सी भर दी थी तोपों के दहानों में I
पलीते रोज़ लगते थे अगरचे कहवाख़ानों में II

इलाही भागकर जाएं तो आख़िर हम कहां जाएं
संपोले आस्तीनों में संपोले आस्तानों में I

वो मंज़र देखकर हंसना भी नामुमकिन था रोना भी
शिकारी लापता थे शेर बैठे थे मचानों में I

नए नक़्शे में हर बिल्डिंग के चहबच्चा ज़रूरी हो
कि जिनको डूबना हो डूब लें घर के मकानों में I

सुना है आगे आगे वो ज़माना आनेवाला है
जनेगी कार मां बच्चे बनेंगे कारखानों में I

घोटाले इस क़दर चारों तरफ़ हैं जी ये डरता है
कि अपना वाक़या शामिल न हो ले दास्तानों में I

संभल जा सोज़ ये शोख़ी तुझे कब ज़ेब देती है
कि अब होने लगी है तेरी गिनती भी सयानों में II