किसी ने बर्फ़ सी भर दी थी तोपों के दहानों में I
पलीते रोज़ लगते थे अगरचे कहवाख़ानों में II
इलाही भागकर जाएं तो आख़िर हम कहां जाएं
संपोले आस्तीनों में संपोले आस्तानों में I
वो मंज़र देखकर हंसना भी नामुमकिन था रोना भी
शिकारी लापता थे शेर बैठे थे मचानों में I
नए नक़्शे में हर बिल्डिंग के चहबच्चा ज़रूरी हो
कि जिनको डूबना हो डूब लें घर के मकानों में I
सुना है आगे आगे वो ज़माना आनेवाला है
जनेगी कार मां बच्चे बनेंगे कारखानों में I
घोटाले इस क़दर चारों तरफ़ हैं जी ये डरता है
कि अपना वाक़या शामिल न हो ले दास्तानों में I
संभल जा सोज़ ये शोख़ी तुझे कब ज़ेब देती है
कि अब होने लगी है तेरी गिनती भी सयानों में II